Thursday 5 December 2013

गीत - आज जलधर क्यों गरजते

गीत

                    आज जलधर क्यों गरजते। 
वह मधुर मुस्कान जिसको देखकर चिढ़ते कभी थे,
हास को परिहास दामिनि,जानकर कुढते कभी थे।
आज तो हम हैं अकेले, फिर कहो किससे अकड़ते,
                    आज जलधर क्यों गरजते।। 
हम जगत से दीन होकर, एक थे आशा लगाये,
तुम दृगों में आ बसोगे, विरह की धूनी रमाये।
तुम न आये, जान एकाकी, अरे जलधर गरजते, 
                    आज जलधर क्यों गरजते।। 
जा अरे घन दूर जा रे,जा कहे संदेश मेरा, 
हाय तुम छाये कहां, छाया यहां गुरुतर अँधेरा।
किसी प्रलोभन मे गये, हा छोड़कर मुझको तड़पते, 
                    आज जलधर क्यों गरजते।। 
आह उठती है हृदय में, औ नयन में अश्रुधारा, 
विकलता रह-रह उमड़ती, विश्व लगता हाय कारा।
हाय अरमानों की दुनिया,थी बसी देखा उजड़ते, 
                    आज जलधर क्यों गरजते।।

2 comments :

  1. सँस्‍कृत के विद्वान , काव्‍यधारा के महासागर......मेरे साहित्‍यिक पथप्रदर्शक....

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ramshankartrivedi@gmail.com