Thursday 31 October 2013

गीत - घट रीत रहा है

गीत


                              जीवन का घट रीत रहा है।
जीवन का पथ धीरे-धीरे चलते-चलते बीत रहा है।
आते कुछ, अतीत के सपने, 
आते याद, पराये अपने।
उसकी स्मृतियां आ घिरतीं-
                            जो अतीत का मीत रहा है। 
                            जीवन का घट रीत रहा है।। 

अर्ध  निमीलित नयन झुके से,
स्वर अधरों पर, मौन रुके से

जाने अनजाने ही वह क्षण -
                             जीवन का संगीत रहा है। 
                             जीवन का घट रीत रहा है।।
कभी भरे भावुक तन मन से,
अधरों पर अगणित चुम्बन से,

जो अंकित हो गया वही तो-
                              जीवन का मधुगीत रहा है।
                              जीवन का घट रीत रहा है।। 

Wednesday 30 October 2013

गीत - रोते रहे रात भर

गीत

वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर। 
देखना कनखियों का सताता रहा,
ले सिसकियां हँसी, याद आता रहा,
स्वप्न कितने जगे स्वप्न कितने बुझे,

फिर भी सपने संजोते रहे रात भर। 
वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर।। 

नत नयन हो हँसी, दन्त मुक्तावली,
खिल गयी ज्यों चटक करके दाडिम कली,
उर हमारा तडप करके कुछ कह गया,

किसने जाना कि गाते रहे रात भर। 
वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर।। 

दूर थे हांथ कैसे पहुँचते वहां,
जिंदगी का चमन लुट रहा था जहां,
देखते-देखते सब हमारा लुटा,

हाथ मलते कलपते रहे रात भर। 
वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर।।

कल्पना सूख कर आज मुरझा गयी,
वह पुरानी हुयी, जो थी हलचल नयी,
चाँद भी घिर गया राहु की चाल से,

नैन खोले निरखते रहे रात भर। 
वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर।। 

आज अँगणाइयां कल की अठखेलियां,
चौकड़ी भर गयी सारी रंगरेलियां,
काल के एक झोंके से सब ढह गया,

याद कर हाय सोते रहे रात भर। 
वह भी दिन थे कि रोते रहे रात भर।। 

Monday 28 October 2013

गीत - जग से हार चला


गीत 

स्मृतियों का भार लिए मैं, जग से हार चला।

मधुरितु में, मधुमय चुम्बन में,
मधुस्मित में, आलिंगन में,
जाने क्या था, मधुचितवन में,
क्या था, उस मधुमय सिहरन में।
छल-प्रपंच के निविड़ क्रोड में, निर्मम प्यार पला।
                                              जग से हार चला॥

ममतामयी, करुण गाथाएं, 
सुन-सुन रीझा मर्मव्यथायें,
दृग भीगे, आंसू के जल से,
भाव थके, लख, विगत विकल से।
कलुष भूल, डूबा आंसू जल, उर मनुहार छला।
                                       जग से हार चला॥

अब अतीत लगता सपना सा,
जग का हुआ रहा अपना सा,
वैभव के आकुल नर्तन में,
भाव भूमि के परिवर्तन मे।
मृगतृष्णा दायित्व बन गयी, संशय भार टला।
                                         जग से हार चला॥

Sunday 27 October 2013

गीत-अमर साधना

गीत 

                                    विश्व के एक कोने में जाकर कहीं,
                                                                        साध लेते किसी की अमर साधना।

सिन्धु सौन्दर्य की थाह होती नहीं,
हर हृदय में अमिट चाह होती नहीं।
स्नेह का दीप उर-उर में जलता नहीं,
उर सभी के लिए तो मचलता नहीं।

                                    प्राण पण से समर्पित कहीं हो कोई-
                                                                         साध लेते उसी की अमर साधना।

वासना पंक में जो सनी ही न हो,
सारे जग के लिए जो बनी ही न हो, 
चातकी बन सदा जो निहारा करे,
एक घनश्याम को, बस पुकारा करे।

                                   भूल पाते न उसकी अलौकिक छटा,
                                                                         साध लेते उसी की अमर साधना।

हो विनत अश्रुजल जो बहाती मिले,
याचना भाव मुख पर रमाती मिले।
हर हृदय बन्ध खोले, सिसकती मिले,
निज विगत सोंचकर, हाथ मलती मिले।

                                    उसके मन की व्यथा को हृदय में लिए-
                                                                           साध लेते उसी की अमर साधना।

Friday 4 October 2013

गीत: आधार ढूंढता हूँ

गीत 

जीवन अधर में अपने आधार ढूंढता  हूँ,
जीवन तरी का  फिर से पतवार ढूंढता हूँ|
जीता रहा अकेला भव सिन्धु था गरजता,
अबतक वही दशा है, मंझधार ढूंढता हूँ|
कितने दिवस बिताये, मुरझा रहा सुमन ही,
अब कुछ दिनों से विकसा, वह प्यार ढूंढता हूँ|
किंचित झलक मिली थी, पर उर न डोल पाया,
एक बार देखने को, मनुहार ढूंढता हूँ|
जग तू न दे सका था, मेरे ह्रदय का संबल,
मैं जीतता रहा हूँ, अब हार ढूंढता हूँ|
मैं मान लूँ कि हारा, शत बार तुमसे हारा,
पर तुम कठोर उर हो, मैं प्यार ढूंढता हूँ|
जीवन अधर में अपने आधार ढूंढता  हूँ,
जीवन तरी का  फिर से पतवार ढूंढता हूँ|

Wednesday 2 October 2013

गीत - फिर बादल घिर आये

गीत 

हो सकता है, चमके बिजली,फिर बादल घिर आये|
                                                             मत्त मयूरी नाचे मधुवन,
मादकता छा जाए तन-मन,
भूले विसरे स्वप्न सुनहले,लख,जीवन लहराए|
                                     फिर बादल घिर आये||
तृषित चातकी पी-पी बोले,
स्वांति बूंद हित,निज मुख खोले,
तृप्ति आश में, अपलक निरखे,निज अस्तित्व गवांये|
                                            फिर बादल घिर आये||
हो सकता है उपल वृष्टि से
स्वांति हीन हो,कुपित द्रष्टि से,
विनय  foMfEcr विगत सोंचकर, निज प्रतिशोध चुकाये|
                                                           फिर बादल घिर आये||
जितने बादल उतने रंग हैं,
उतने ही जीवन के ढंग हैं,
स्वांति cawne; सभी मेघ हैं, जो समझे पछताए|
                                           फिर बादल घिर आये||
री चातकी ! अगम यह जग है,
उससे अगम तुम्हारा मग है,
विनय स्नेह के तृषित ,  रिक्तघन - फिरते स्वांग रचाए|
                                                फिर बादल घिर आये||