सरस्वती - वन्दना
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नव सृजन की शक्ति दे मां।
जन भटकता जा रहा है ,
भ्रान्ति, मृगतृष्णा बनी है।
छा रहा अविवेक का तम,
दम्भ की छाया घनी है।
सहज सात्विकता सराहें,
वह अटल अनुरक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
स्वार्थपरता,दनुजता का,
नग्न नर्तन सीखता जग।
बढ़ रहा अज्ञान पथ पर,
मनुजता के शीश धर पग।
आत्मसंयम, सत्य निष्ठा,
की अलौकिक भक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
ज्ञान के स्नेहिल स्वरों से,
हम जगा दें विश्व भर को।
तज अधोगति, वरण कर ले,
मनुज अपने मनुजपन को।
वह सुधा-रस से समन्वित,
ग्यानमय सद्उक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
दीन, हीन,निरीह कोई,
दुख न पावे सबल कर से।
श्रम समर्पित हों सभी, सद् -
भावना का मेघ बरसे।
इन दृगों से,यह सभी कुछ,
देखने की तृप्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
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नव सृजन की शक्ति दे मां।
जन भटकता जा रहा है ,
भ्रान्ति, मृगतृष्णा बनी है।
छा रहा अविवेक का तम,
दम्भ की छाया घनी है।
सहज सात्विकता सराहें,
वह अटल अनुरक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
स्वार्थपरता,दनुजता का,
नग्न नर्तन सीखता जग।
बढ़ रहा अज्ञान पथ पर,
मनुजता के शीश धर पग।
आत्मसंयम, सत्य निष्ठा,
की अलौकिक भक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
ज्ञान के स्नेहिल स्वरों से,
हम जगा दें विश्व भर को।
तज अधोगति, वरण कर ले,
मनुज अपने मनुजपन को।
वह सुधा-रस से समन्वित,
ग्यानमय सद्उक्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
दीन, हीन,निरीह कोई,
दुख न पावे सबल कर से।
श्रम समर्पित हों सभी, सद् -
भावना का मेघ बरसे।
इन दृगों से,यह सभी कुछ,
देखने की तृप्ति दे मां।
नव सृजन की शक्ति दे मां।
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