Wednesday 9 July 2014

वाणी-वन्दना


रचती रही नूतन भाव सदा, कवियों के उरों में समाती रही।
कवि मैथिल के मिस भक्ति कभी, रस राज का रास सुनाती रही।।
कवि चंद के छंद विधान लिये, रणक्षेत्र में जा मंडराती रही।
कबिरा के कपाल में बैठि कभी, सद्ग्यान का पंथ दिखाती रही।।

जगमंगल भाव लिये तुलसी, कविता सुधाधार बहाते रहे।
शिशु की शिशुता का सनेह सना, रस सूर सदा सरसाते रहे।।
रसखान लिये रसराज छटा, रति भाव-प्रसून लुटाते रहे।
तव आशिष पा कवि भूषण भी, जन जागृति-ओज जगाते रहे।।

करुणामयी हे करुणा करके, इस ओर भी नैकु निहार दे माँ।
युग के अनुरूप दिया सभी को, इसको कुछ नूतन सार दे माँ।।
जग देखता ही रह जाय खड़ा, कुछ दुर्लभ सा मृदु प्यार दे माँ।
जिससे जग को कुछ दे सके ये, प्रतिभा कुछ ऐसी निखार दे माँ।।

भटके हुये मानव को पथ से, पथ इष्ट पे खींच के ला सकूँ मैं।
बुझती हुई नैतिकता की शिखा, कुछ ग्यान कणों से जगा सकूँ मैं।।
मनु का रहे स्वत्व घनत्व लिये, मनुजत्व का तत्व सिखा सकूँ मैं।
वरदायिनी हो यदि तेरी कृपा, कवि कर्म का मर्म निभा सकूँ मैं।।

Monday 6 January 2014

सरस्वती -वन्दना

                सरस्वती - वन्दना
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            नव सृजन की शक्ति दे मां।
जन भटकता जा रहा है ,
            भ्रान्ति, मृगतृष्णा बनी है।
छा रहा अविवेक का तम,
             दम्भ की छाया घनी है।
सहज सात्विकता सराहें,
              वह अटल अनुरक्ति दे मां।
               नव सृजन की शक्ति दे मां।
स्वार्थपरता,दनुजता का,
                नग्न नर्तन सीखता जग।
बढ़ रहा अज्ञान पथ पर,
                 मनुजता के शीश धर पग।
आत्मसंयम, सत्य निष्ठा,
                  की अलौकिक भक्ति दे मां।
                   नव सृजन की शक्ति दे मां।
ज्ञान के स्नेहिल स्वरों से,
                   हम जगा दें विश्व भर को।
तज अधोगति, वरण कर ले,
                    मनुज अपने मनुजपन को।
वह सुधा-रस से समन्वित,
                    ग्यानमय सद्उक्ति दे मां।
                     नव सृजन की शक्ति दे मां।
दीन, हीन,निरीह कोई,
                      दुख न पावे सबल कर से।
श्रम समर्पित हों सभी, सद् -
                       भावना का मेघ बरसे।
इन दृगों से,यह सभी कुछ,
                        देखने की तृप्ति दे मां।
                         नव सृजन की शक्ति दे मां।
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Saturday 4 January 2014

कवि की कामना

                           कामना
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                                   स्वर्णिम दीप जले।
प्रगति पंथ पर झलके आभा, नूतन प्राण पले।।
                                   स्वर्णिम दीप जले।।
हठ -छल -दम्भ -द्वेष की माया, जग से दूर भगे।
नवल - ह्र्दय -उत्साह -अनालस, में मन प्राण पगे।
सत्य -प्रेम -करुणा का सुर तरु,उर-उर बीच फले।।
                                      स्वर्णिम दीप जले।।
पर ईर्ष्या पर द्रोह दमित हो,जीवन लक्ष्य मिले।
उपजे,शुचि सद्भाव परस्पर, ह्र्दय सरोज खिले।
मानव -मानव का मन तन जब, जीवन साथ चले।।
                                     स्वर्णिम दीप जले।।
देश -जाति- बन्धन तज मानव, जग की ओर बढ़े।
विश्व -शान्ति मानवता -हित नित,नव सोपान चढ़े।
युद्ध -क्लान्ति दिग्भ्रान्ति, दनुजता, का अभिशाप ढले।।
                                         स्वर्णिम दीप जले।।
दु:ख, दैन्य, लघुता का क्रन्दन, श्रुति -पथ में न अड़े।
जन-जीवन पर समता ममता, का मधुमेह झड़े।
निरुज, निरभिमद मनु - संतति हो,जड़ अवसाद टले।।
                                         स्वर्णिम दीप जले।।
                  दया का स्वर्णिम दीप जले।।
                             ________

Friday 3 January 2014

मइया की पुकार

              लोकगीत - ( मइया की पुकार)
       भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि!
लेइ बलैया लाल हमारे, आवहु द्वार सवांरे,
उरझी नाव देश कै, फिरिकै लावहु खींचि किनारे,
       लखिकै पूतन कै करतूतै रोवै आंसू  ढारि ढारि।
        भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि।
तुम्हरे रकतन सिंचो बगीचो, तोरहिं अउरु उजारैं,
खुदगरजी कै अगिनि लगाइनि, हँसि हँसि हाय पजारैं,
         आपन घर मां आगि लगावँइ आपै ढारैं वारि।
        भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि।
सिंदूरन कै लाज बचौते, भुख मरुअन कै रोटी ,
दलितन लाइ गरे मां लेते, नंगन देत लँगोटी,
         सो छीना झपटी पर उतरे हमरी कोखि बिसारि।
          भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि।
दूध लजाइनि हमरो सिगरो, राजघाट कौ तारिनि,
भोरी जनता का बहकाइनि, बहुरुपिया पन धारिनि,
         सारी दुनिया ते उठाइनि हो दियानत हमारि।
         भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि।
मैना होती झलकारिन या होती लक्ष्मी रानी,
वीर शिवा, सुखदेव सरीखे, जो होते बलिदानी,
    काहेक नया डगमग डोलति काहेक कुगति हमारि।
         भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि ।
होउ जहां अम्बर तै फाटउ, यह विपदा निरवारौ,
सिंची खून की बाग न उजरै, यहिका दौरि बचावौ,
         अबहूं समय देश कै धरती, आवहु लेहु उबारि।
          भारत मइया हो पुकारै तुम्हैं अँचरा पसारि।
                               ______

Wednesday 1 January 2014

लोकगीत - उतारैं आरती

                     लोक गीत -उतारैं आरती
     (आकाशवाणी,लखनऊ द्वारा प्रसारित देशगीत)

       आवउ देश के शहिदवौ उतारै आरती।
कबको मुरझो देखि न पायेउ अपनो देश बगीचो,
तन कै रकत विहँसि हँसि अंजुरिन भरिके जेहि का सींचो,
       आजु पूजा कै सजाये साजु ठाढ़ी भारती।
       आवउ देश के शहिदवौ उतारैं आरती।
वनिता, सुत को मोह न कीन्हेउ झूलेउ मौत हिंडोले,
बरछी,ढाल,कृपाण सहेउ सब सहेउ बम्ब के गोले,
       माता तुमका निहारै आंसू धार ढारती।
       आवउ देश के शहिदवौ उतारैं आरती।
धरती के कन -कन मां रमिगइ तुम्हरी अमर कहानी,
मरिकइ मइया केर  बचायेउ तुम आंखिन कै पानी,
       वहइ अंचरा पसारे मइया प्रान वारती
       आवउ देश कै शहिदवौ उतारैं आरती। 

Sunday 29 December 2013

लोकगीत - साजउ माता कै बहुरिया (स्वतंत्रता गीत)

   लोकगीत

(यह लोकगीत स्वतंत्रता को समर्पित है तथा आकाशवाणी लखनऊ द्वारा प्रसारित किया जा चुका है)

           साजउ माता कै बहुरिया सिंगारु अपना।
ब्रम्हपुत्र गंगा कौ निरखौ, जमुना कृष्ण कवेरी,
सती नर्मदा सरजू परखौ, गण्डक सोन निवेरी,
निरखौ मलकिन होइकै घर को पसारु अपना।।
           साजउ माता कै बहुरिया सिंगारु अपना।
अनगिन लाल लुटे लइबे मां,तुमरे टाट पटोरे,
अनगिन पूत मांग भरिबे कौ, तन को रकतु निचोरे,
निरखौ अचल सुहाग कौ, पगारु अपना।।
           साजउ माता कै बहुरिया सिंगारु अपना।
कोई परोसी तुमहि कनखियन, देखइ नैकु न भूलउ,
वीर शिवा सुखदेव निहारउ, तुम उन हिन पर फूलउ,
तजि कै प्रीति परदेसी कै विचारु अपना।।
          साजउ माता कै बहुरिया सिंगारु अपना।
दिल्ली और हिमाचल निरखौ, महाराष्ट्र केराला,
राजस्थान बंग कौ परखौ, एक - एक ते आला,
धानी चूनर संवारउ रूप सारू अपना।।
          साजउ माता कै बहुरिया सिंगारु अपना।

Sunday 22 December 2013

जीवन परिचय

                    जीवन परिचय
                    राम शंकर त्रिवेदी

         22 जुलाई सन् 1933 ईसवी को खीरी जनपद के ग्राम भीखमपुर में इनका जन्म हुआ। इनके पिता का नाम श्री केदारनाथ त्रिवेदी था। वे एक सामान्य परिवार के व्यक्ति थे, किन्तु सादगी और सरलता उनके जीवन के अंग थे। राम शंकर त्रिवेदी ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद शेष सम्पूर्ण शिक्षा स्वाध्याय द्वारा प्राप्त की। इन्होंने हिंदी तथा संस्कृत विषय में परास्नातक किया। प्रारम्भिक शिक्षा के उपरान्त ये अध्यापन कार्य में लग गये। प्राथमिक विद्यालय से लेकर इन्टरमीडिएट कालेज तक अध्यापन कार्य किया। युवराज दत्त इन्टर कालेज ओयल खीरी में संस्कृत प्रवक्ता पद पर रहकर एक सफल अध्यापक का जीवन व्यतीत किया।इनकी लोकप्रियता एवं शत प्रतिशत परीक्षाफल को देखते हुए इन्हें राज्य सरकार द्वारा "दक्षता - पुरस्कार " से सम्मानित किया गया। सन् 1963-64 में एक वर्ष के लिए राजकीय इन्टर कालेज अमरोहा उ. प्र. में अध्यापन कार्य किया। प्रबन्ध समिति युवराज दत्त इन्टर कालेज ओयल द्वारा इनकी योग्यता एवं व्यवहार को देखते हुए इन्हें उसी पद पर पुनः वापस बुला लिया गया और फिर सेवानिवृति तक यहीं रहे। बचपन से ही इनकी काव्य प्रतिभा झलकने लगी थी। उसमें दिन प्रतिदिन निखार आता गया। और उस क्षेत्र  में " कवि जी "उपनाम से प्रसिद्ध हुए। यहां के जनमानस में इनकी पहचान एक कवि, विद्वान,एवं सरल व्यक्तित्व वाले सफल शिक्षक के रूप में है।सन् 1994 में सेवानिवृत होकर ये वर्तमान समय में टीचर्स कालोनी ओयल में ही रहकर काव्य साधना कर रहे हैं। इन्होंने लगभग 500 फुटकर कविताओं के अतिरिक्त कई खण्ड काव्य लिखे हैं। इनकी प्रकाशित रचनाएँ निम्न हैं _
    1- वीराग्रणी राणा।
    2-प्रयास।
    3-लघु गीत संग्रह।
    4-नववर्ष। (उपन्यास)
    5-स्मृति।
    6-भर्तृहरि शतक का पद्यानुवाद।
    7-अमर शहीद। (खण्ड - काव्य)
इसके अतिरिक्त अन्य रचनायें जो सम सामयिक विषयों पर लिखी गई हैं, अप्रकाशित हैं।
खडी बोली के अतिरिक्त इनके अवधी एवं बृजभाषा के गीत विशेष रूप से लोकप्रिय रहे हैं। इनके लिखे दो गीत आकाश वाणी लखनऊ द्वारा प्रसारित किये गये थे जिनकी विशेष सराहना की गयी थी। ( ये दोनों गीत आगे दिये जायेंगे)। लखनऊ विश्व विद्यालय में शोध छात्रों के द्वारा इन पर दो " लघु शोध प्रबन्ध " भी लिखे गये हैं। समय - समय पर इनको कई प्रतिष्ठित सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाता रहा है।

        यहां पर इनके व्यक्तित्व की कुछ असाधारण विशेषताओं  का वर्णन करना समीचीन प्रतीत होता है -
        1- इनकी अद्भुत स्मरण-शक्ति।
        2-इनकी अद्भुत श्रवण -शक्ति।
        3-शस्त्र - संचालन की कुशलता एवं अचूक -
             निशाना।
        4-अद्भुत सकारात्मकता एवं साहस।
        5-अद्वितीय वक्ता।
पारिवारिक स्थिति  - इनके परिवार में पत्नी, चार पुत्रियां एवं एक पुत्र है। ये सभी विवाहित हैं तथा प्राथमिक से लेकर उच्च - शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। इसके अतिरिक्त इनके दो पौत्र, चार नवासे एवं चार नवासिया हैं। इनके स्नेह एवं आशीर्वाद से सिंचित इस परिवार में इनके संस्कार व अनुशासन की विरासत परिलक्षित होती है।  ---            डा. नीलम त्रिवेदी  ( पुत्री)